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Jharkhand Live News – ब्लैक फंगस से पीड़ित महिला का इलाज नहीं होने पर हाईकोर्ट सख्त, CJ बोले-पैसा होता तो मैं मदद करता

झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ में बुधवार को ब्लैक फंगस पीड़ित एक महिला के मामले में मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा  कि जब सरकार इलाज में मदद नहीं करेगी, तो क्या लोग जमीन बेचकर इलाज कराएंगे। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि पीड़िता का समुचित इलाज कराया जाए। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर मेरे पास पैसा होता तो मैं पीड़िता को इलाज में मदद करता। अदालत ने सरकार से पूछा कि जब ब्लैक फंगस को सरकार ने महामारी घोषित किया है, तो वह इससे निपटने के लिए क्या कर रही है? अदालत ने पीड़िता उषा देवी के मामले में सरकार से पूछा है कि उसके इलाज की क्या व्यवस्था की गयी है? हाइकोर्ट ने पीड़िता के बेटे गौरव की ओर से लिखे पत्र पर स्वत: संज्ञान लिया है। 

सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राजीव रंजन ने अदालत को बताया कि रिम्स में ब्लैक फंगस मरीजों के लिए इलाज की व्यवस्था हो रही है। रिम्स निदेशक ने कहा कि ब्लैक फंगस से निपटने के लिए सारी तैयारी की गयी है। महिला का समुचित इलाज कराया जाएगा। अदालत ने रिम्स निदेशक से कहा कि अदालत को पत्र लिखने वाले परिजन के मरीज एवं अन्य मरीजों को प्रताड़ित न किया जाए। वहीं, अदालत ने झालसा को भी शपथ पत्र दाखिल कर यह बताने को कहा है कि ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों के क्या कर रहा है? राज्य सरकार एवं रिम्स निदेशक के जवाब के बाद अदालत ने कहा कि हर मरीज को एयरलिफ्ट कराकर दूसरी जगह इलाज के लिए भेजा जाना मुमकिन नहीं है, लेकिन रिम्स में बेहतर इलाज की सुविधा मिले, इसकी व्यवस्था जरूर की जानी चाहिए।

हाईकोर्ट की फटकार के बाद ऑपरेशन कल
हाईकोर्ट की फटना के बाद रिम्स प्रशासन रेस हो गया है। गिरिडीह जिले के पंचबा की महिला उषा देवी का गुरुवार को रिम्स में ऑपरेशन किया जाएगा। दरअसल, उषा देवी ब्लैक फंगस से पीड़ित हैं। 17 मई को उन्हें रिम्स लाया गया। परंतु देरी से इलाज शुरू होने से एक आंख शुरु हुआ संक्रमण दिमाग तक पहुंच गया है। मां की खराब स्थिति को देखते हुए उनके बेटे गौरव ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखा। पत्र में अपनी मां के बेहतर इलाज के लिए केरल या अहमदाबाद भेजने की गुहार लगायी। परंतु सरकार ने मात्र एक लाख रुपये की मदद की बात कही। दूसरी जगह भेजकर इलाज करने में सरकार ने असमर्थता जतायी। इसके बाद पीड़िता के बेटे ने हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर  मदद की गुहार लगायी। 

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