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Bihar Live News – बिहार में बाढ़: नारायणी के कोप से अनाज से लेकर आधारकार्ड व सिंदूर तक बचाने की जद्दोजहद

सदर प्रखंड का खाप मकसूदपुर गांव। दूर-दूर तक फैली अपार जल राशि। पूरवा हवा पानी से टकराकर  लहर बनाती हुई। वास्तव में उफनती नारायणी (गंडक )ने पूरे गांव को आगोश में ले रखा है। नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। दोपहर तक किसी-किसी घर की खिड़की को छूने लगा है पानी।  ग्रामीण अपने घरों से अनाज,बर्तन से लेकर आधार कार्ड,दवा व सिंदूर तक निकालने की जद्दोजहर कर रहे हैं। इन्हें भय है कि जिस वेग से नदी उफन रही है,अगर नहीं निकालेंगे तो  शाम तक बहा ले जाएगी गृहस्थी के सामान। 

सिर पर गठरी-मोटरी लादे बाहर निकल रहे बूचन यादव कहते हैं कि साब! हर साल की यही कहानी है। घर छोड़ कर नहीं जाएंगे तो फिर जिंदा कैसे रह पाएंगे। जिंदा रहने के लिए माल-मवेशी के साथ पलायन करने वालों में मुन्नीलाल से लेकर कटघरवा के बैजू यादव व दीनानाथ यादव तक दर्जनों ग्रामीणों शामिल हैं। काशीनाथ यादव कहते हैं कि उपाय क्या है? बिटिया की शादी थी तो घर छोड़कर सामान के साथ जमसड़ जाना पड़ा। जैसे दिन व रात होना तय है,उसी तरह आषाढ़ -सावन में बारिश होने के साथ बाढ़ आनी भी तय है। इस बार विधाता विपरित है। ज्येष्ठ में ही बाढ़ आ गई। 

वास्तव में सदर प्रखंड के गंडक के तटवर्ती जागीरी टोला,कटघरवा,खाप मकूसदपुर सहित सात-आठ गांवों के ग्रामीणों की आषाढ़ से पहले ही आई बाढ़ से मुसीबत बढ़ गई है। दो सौ से अधिक परिवार विस्थापित हो चुके हैं। इसमें से अधिकतर परिवारों ने अपना आशियाना दूसरे जगह भी बना रखा है। लेकिन,जिनके ‘दूसरा घर ’ नहीं है वे खुले आसमान के नीचे इधर-उधर शरण लिए हुए हैं। हालांकि गुरुवार को बारिश थमने से विस्थापित हुए ग्रामीण थोड़ी राहत की सांस ले रहे हैं। 

फूल कुमारी पानी में चल कर हुई बेदम

खाप मकसूदपुर की फूल कुमारी पानी हेल कर बाहर निकलते हुए थक गई है। उसकी सांस फूल रही है। कहने लगी कोई हाकिम-सरकार देखने वाला नहीं है।  एक नाव तक की व्यवस्था नहीं है। उसके परिवार में कुल नौ सदस्य हैं। पुत्रवधू व बच्चे के साथ वह घर छोड़कर बाहर आ गई है। घर के मर्द लोग अनाज बचा कर बाहर निकलने में जुटे हैं। घर में पानी घुसने से रात में खाना भी नहीं बना पाई। गुरुवार की दोपहर पानी से बाहर निकलने पर चूड़ा मंगाकर पुत्रवधू व पोते को खिलायी व खुद भी खायी। 

…और रंभा ने पांच सौ में बेच दी मुर्गा

बांध पर शरण लेने के लिए पहुंची रंभा देवी के लिए आफत में मुर्गा संभालना कठिन था। अरसे से एक मुर्गा को पाल-पोस रखा था। खुले आसमान के नीचे गृहस्थी के सामान को संभाले या फिर बच्चे व मुर्गे को। सो भारी मन से पांच सौ में बेच कर झंझट से मुक्ति पा ली।

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