इन दिनों झारखंड में फलों के राजा आम का जलवा है. आम की बागबानी ने खूंटी ज़िले की महिलाओं को नई पहचान दे दी है. इन महिलाओं को मैंगो दीदी के नाम से पुकारा जाने लगा है. हालांकि इस बार मैंगो दीदी का व्यापार पहले के मुकाबले थोड़ा ठंडा है. एक दौर था, जब ये महिलाएं गरीबी की मार झेलने पर मजबूर थीं, लेकिन अपने हौसले और कुछ सरकारी प्रोत्साहन से इन्होंने कामयाबी की मिसाल तो रची, लेकिन इस बार आलम यह है कि उनकी कड़ी मेहनत के सही दाम मिलना तक मुश्किल हो गए हैं.
आम, आम और बस आम ही आम. अगर आप खूंटी ज़िले के बगीचों में खड़े हैं, तो नज़ारा ही नहीं, सुगंध का नाम भी आम ही होगा. किसी पेड़ पर आम्रपाली है, तो किसी पेड़ पर दशहरी, किसी पेड़ पर मल्लिका का जलवा है, तो कोई लंगड़ा होकर भी दूसरे से आगे है. ये वही खूंटी ज़िला है, जो देश में अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. लेकिन, अब यहां की महिलाओं की कड़ी मेहनत का दूसरा नाम ‘मैंगो दीदी’ हो गया है. एतवारी बताती हैं कि ये भूमि बंजर थी, पर कुछ सालों की मेहनत से करीब 20 एकड़ में आम का बगीचा फल गया.
कैसे बदल गई पूरी तस्वीर?
खूंटी के गुफ़ू गांव की निलिनी महिला समिति ने 2000 से ज्यादा आम के पेड़ लगाए. बिरसा मुंडा आम बागबानी और मनरेगा जैसी स्कीमों के तहत पेड़ लगाए गए. एक समय था, जब गांव की महिलाएं एक-एक पैसे को मोहताज थीं, पर धीरे धीरे जिंदगी बदल गई. अब तो रोज़गार के लिए दूसरे प्रदेश जाने वाले गांव के पुरुष भी महिलाओं का हाथ बंटाते दिखते हैं. खूंटी का आम उत्तर प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ के बाज़ार तक पहुंच रहा है. सरकार ने महिलाओं के लिए जो रोज़गार के अवसर प्रदान किए, उनकी तो सराहना हो रही है, लेकिन उत्पाद का सही बाज़ार नहीं मिलने की वजह से इन महिलाओं को नुकसान भी हो रहा है.
इस बार आम का फल ज्यादा होने की वजह से सही दाम नहीं मिल रहे. मालती देवी के अनुसार जो आम बाज़ार में 40 रुपया प्रति किलो बिक रहा है, उसी आम को ये मैंगो दीदियां 10 से 15 रुपया प्रति किलो बेचने पर मजबूर हैं. वजह यही है कि आम की पैदावार ज़्यादा हुई है और समय पर आम नहीं बिके, तो खराब हो जाएंगे.