अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में भारतीय मूल के प्रसिद्ध लेखक सलमान रूश्दी पर 24 साल का एक नौजवान जानलेवा हमला करता है। हमले में बुरी तरह से घायल सलमान रूश्दी की जान तो हालांकि बच जाती है, लेकिन पूछताछ के दौरान हमलावर बताता है, कि वो ईरान में इस्लामिक क्रांति लाने वाले अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी से प्रभावित था और उन्हें अपना नायक मानता था। अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी, वही शख्स, जिन्होंने सलमान रूश्दी का सिर कलम करने का फतवा जारी किया था। वही नेता, जिसने एक दो नहीं, बल्कि 30 हजार महिलाएं, बच्चों और लोगों को मारने का विश्व इतिहास का सबसे क्रूर फतवा जारी किया था।
फतवा… इस्लामिक नेताओं का खौफनाक हथियार!
आम तौर पर ये फतवा इस्लामिक गुरू किसी शख्स के खिलाफ जारी करते हैं, जिसमें या तो उन्हें इस्लाम से बाहर कर दिया जाता है या फिर अकसर उन्हें जान से मारने का फतवा जारी किया जाता है। लेकिन, ईरान में फतवा एक तरह से कानूनी राय है, जो एक इस्लामी धार्मिक नेता के द्वारा दिया जाने वाला फरमान है। यह आशंका है कि पिछले हफ्ते सलमान रुश्दी को चाकू मारने वाला एक फतवा को अंजाम देने की कोशिश कर रहा था, जिसे 1989 में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने उपन्यासकार के खिलाफ अपनी पुस्तक द सैटेनिक वर्सेज के विमोचन के बाद जारी किया था, जो इस्लामिक पैगंबर के जीवन से प्रेरित था और आरोप है, कि उन्होंने अपनी किताब में इस्लाम का अपमान किया है।
खोमैनी का सबसे घातक फतवा
खोमैनी का सबसे घातक फतवा साल 1988 में जारी किया गया था और उस फतवे के तहत ईरान में हजारों लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी और उन्हें क्रेन से लटका दिया गया था। 1988 के राजनीतिक कैदी की फांसी की भयावहता को हुसैन-अली मोंटेजेरी के संस्मरणों ने हाइलाइट किया था, जो ईरान के सर्वोच्च नेता के सबसे करीबी सलाहकारों में से एक थे, जिन्होंने बाद में इस नरसंहार की निंदा की थी। कावे बसमेनजी की किताब तेहरान ब्लूज़ के अनुसार, मोंटेज़ेरी ने खुमैनी को उनके क्रूर फतवे के बाद कहा था, कि ‘कम से कम उन महिलाओं को बख्शने का आदेश जारी करें, जिनके बच्चे हैं। लेकिन, ईरान के सर्वोच्च नेता ने उनकी बात को खारिज कर दिया और बच्चों के साथ महिलाओं को भी फांसी से लटका दिया गया था।
कुछ हफ्तों में हजारों लोगों को फांसी
हुसैन-अली मोंटेजेरी ने अपनी किताब में लिखा है, कि ‘कुछ दिनों में कई हजार राजनीतिक कैदियों की फांसी दे दी गई’। हुसैन-अली मोंटेजेरी की किताब ने पूरी दुनिया में सनसनी मचा दी थी। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, कि खुमैनी के आदेश के अनुसार कैदियों पर ‘अल्लाह के खिलाफ युद्ध छेड़ने’ का आरोप लगाया गया और उनके खिलाफ मौत का फतवा जारी किया गया। फतवे में कहा गया था, कि उन्होंने अल्लाह का अपमान किया है और उन्हें ये अधिकार है, कि वो तय करें, कि ये लोग जिंदा रहें या फिर मर जाएं। अखबार सन की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरानी सर्वोच्च नेता ने कहा कि, ‘ये लोग दया के पात्र नहीं हैं।’ उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, कि जिन भी लोगों का विचार ईरानी सर्वोच्च नेता से नहीं मिलती थी, उन्हें जेल में डाल दिया गया था और सैकड़ों लोग तो ऐसे थे, जिन्हें पता भी नहीं था, कि वो जेल में क्यों हैं, लेकिन उनके खिलाफ भी मौत का फतवा जारी किया गया।
सिर्फ 30 मिनट में दे दी गई फांसी
हुसैन-अली मोंटेजेरी की किताब के मुताबिक, जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी, उन्हें सिर्फ 30 मिनट के अंतराल में क्रेन से लटकाकर फांसी दे दी गई और फिर शवों के ढेर को फोर्कलिफ्ट ट्रकों में लाद दिया गया था। इनमें से कई मरने वाले ऐसे थे, जिन्हें पहले बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया था। हालांकि, मारे गए लोगों की संख्या के अनुमान अलग-अलग हैं और ईरान से छिपाकर लाए गये गुप्त दस्तावेजों में लिखा है, कि करीब आठ हजार ऐसे लोगों को फांसी से लटकाया गया, जिनमें से ज्यादातर की उम्र 13 साल से कम थी और इन्हें 19 जुलाई 1988 को शुरू हुए नरसंहार के पहले ही दो हफ्तों में क्रेन से लटकाकर फांसी दे दी गई थी। वहीं, ईरान से भागे नेता मोहम्मद नुरिज़ाद ने कहा कि, दो से तीन महीनों में करीब 33,000 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और 36 सामूहिक कब्रों में उन्हें दफनाया गया।
क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी
क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी
नेशनल काउंसिल ऑफ रेजिस्टेंस ऑफ ईरान की एक हालिया किताब, क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी में बताया गया है, कि ईरान में पीड़ितों को कैसे फांसी पर लटकाया गया। इस किताब में एक चश्मदीद ने कहा कि, ‘रस्सी ऊंची छत से लटकी हुई थीं, और एक बार में 10 से 15 कैदियों को वहां पर लाया जाता था, जिनकी आंखों पर पट्टी बंधे होते थे और फिर उन्हें एक स्टेज पर खड़ा किया जाता था और फिर उनके गले में फंदा डालकर लटका दिया जाता था’। चश्मदीदों के मुताबिक, ‘वहां पहरेदार उनके गले में फंदा लगाते थे। फिर जेल का गवर्नर हर एक को पीछे से लात मारकर स्टेज से धकेल देता था और वो फांसी पर लटक जाते थे।’
बेहद खतरनाक थी मौत की सजा
बेहद खतरनाक थी मौत की सजा
वहीं, एक और चश्मदीद ने कहा कि, अगर स्टेज से धक्का देने के बाद और फांसी पर लटके रहने के बाद भी किसी कैदी की जान नहीं जाती थी, तो गार्ड उस कैदी के पैर पकड़कर उसके शरीर से लटक जाता था, जिससे कैदी की गर्दन टूट जाती थी और वो मर जाता था। चश्मदीद ने कहा कि, ऐसे दर्जनों मामले सामने आए, जब फांसी से लटकने के बाद कैदी की मौत नहीं हुई, जिसके बाद गार्ड उनके पैर पर लटक गये और फिर उनकी मौत हुई। चश्मदीदों ने कहा कि, एक बार में 10 से 15 कैदियों को फांसी देने के बाद उनके शव को सामूहिक कब्रों में फेंक दिया जाता था और कई ऐसे मामले भी सामने आए, जिसमें फांसी में नहीं मरे लोगों के शवों को जिंदा ही दफना दिया गया।