बच्चों के लिए इनकी मां का प्यार सबसे महत्वपूर्ण होता है. ऐसा मैं इसलिए बात कर रहा हूं, क्योंकि नेताजी सुभाषचंद्र बोस केंद्रीय जेल में कुछ ऐंसी महिलाएं अपने अपराधों की सजा भुगतने के लिए बंद हैं, जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं. बता दें, इन बच्चों को मां से दूर नहीं रखा जा सकता, इसलिए ममत्व के कारण ये मासूम भी अपनी मां के अपराधों की सजा भुगत रहे मालूम हो कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस केंद्रीय जेल में दो मासूम बच्चे बंद हैं, वो भी बिना कोई अपराध किए. जी हां, सुनने में यह बात भले ही अटपटी लगे, लेकिन सच है. हालांकि, जेल प्रशासन द्वारा बच्चों के लिए ऐसे तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं, जिससे उनको बाहरी दुनिया व समाज से जोड़कर रखा जा सके. इन सब बातों के बीच उन महिला बंदियों की आंखों में पश्चाताप के आंसू है, जिनके अपराध के कारण उनके मासूम बच्चे भी जेल की चारदीवारी में कैद हैं.
जेल प्रशासन द्वारा बच्चों की इन सुविधा का रखा जाता है ध्यान
दरअसल, जानकारी हो कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस केंद्रीय जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रही दो महिला बंदियों के कम उम्र के दो बच्चे हैं, जो अपनी मां के साथ ही जेल में रह रहे हैं. एक बच्चा दो वर्ष का एवं दूसरा ढाई वर्ष का है. इन मासूम बच्चों का मानसिक विकास न रुके, इसके लिए जेल प्रशासन द्वारा बच्चों की हर सुविधा का ध्यान रखा जाता है. पढ़ाई-लिखाई के साथ खाना-पीना एवं घुमाने के लिए जेल के बाहर भी ले जाया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन-
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए गाइडलाइन बनाई है, जिसके अनुसार जेल में बंद महिला बंदियों के साथ उनके 6 साल तक के बच्चों को साथ रखने की अनुमति है. इन बच्चों की मनोदशा पर जेल के माहौल का विपरीत प्रभाव न पड़े, इसलिए कई तहर के नियम बनाए गए हैं.
इसके अलावा जेल परिसर में स्थित आंगनवाड़ी केंद्र में बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा की व्यवस्था की गई है और जेल के शिक्षक भी महिला वार्ड में बच्चों को अध्यापन का कार्य कराते हैं. इन्ही नियमों एवं कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार जेल प्रशासन बच्चों की देखरेख करता है. बच्चों को खाने के लिए फल, पीने के लिए दूध, भोजन में खीर आदि पौष्टिक आहार दिया जाता है, जिससे वह शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर न हो पाएं.
निकलते हैं जेल से बाहर-
इसके अलावा जेल के माहौल से अलग वातावरण में लाने तथा मानसिक विकास के लिए महिला बंदियों के बच्चों को महीने में दो बार बच्चों को शहर भ्रमण कराने जेल से बाहर लाया जाता है. शहर भ्रमण में बच्चों को जानवर, वाहन, फल, सब्जी, बाजार, फूल, पौधे, सहित अन्य जरूरी वैसा वस्तुओं की जानकारी दी जाती है, जिससे बच्चे इन सभी चीजों को देखकर पहचान सकें. क्योंकि जेल के अंदर बच्चों को यह सब देखने के लिए नहीं मिलता है, इसलिए उनके मानिसक विकास के लिए यह बेहद जरुरी होता है.
छलक पड़े आंसू-
मालूम हो कि महिला बंदियों से जो बच्चों के साथ रह रही है से बात की तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े. दोनों के मन में पश्चाताप था, कि अगर उनके द्वारा अपराध न होता तो वह और उनके मासूम बच्चे जेल में कैद न होते. दो वर्ष के बच्चे की मां (महिला बंदी) ने बताया कि वह दस साल से आजीवन कारावास की सजा भोग रही है. दो साल पहले पैरोल पर अपने घर गई थी, वापस जेल आई तो उसकी कोख में बच्चा था. जेल प्रशासन ने अस्पताल में प्रसव कराया और जरुरत का हर सामान दिया.
वहीं, दूसरी महिला बंदी ने बताया कि जब वह जेल आई थी तब उसका बच्चा करीब छह माह का था, जो अब दो साल का हो चुका है.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस केंद्रीय जेल के जेल अधीक्षक का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार बच्चों एवं महिला बंदियों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है.
महिला बंदियों की संख्या
सजायाफ्ता महिला बंदी-79 विचाराधीन महिला बंदी-46 कुल महिला बंदी-125 महिला बंदियों के बच्चे-2 इनका कहना- जेल में महिला बंदियों के साथ छह साल तक के बच्चों को रखने की अनुमति है.