आज के दिन में विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसर बनने का सपना रखते हैं. ऐसे लोगों के लिए अच्छी खबर है. बता दें, अब डिग्री की बाध्यता खत्म हो गई है. विभिन्न क्षेत्रों के मान्यता प्राप्त विशेषज्ञों को उच्च शिक्षण संस्थान फैकल्टी मेंबर के तौर पर नियुक्त कर सकेंगे. ‘प्रोफेसर आफ प्रैक्टिस’ योजना के तहत शिक्षकों की नियुक्ति के लिए औपचारिक अकादमिक योग्यता (डिग्री) की कोई बाध्यता नहीं रहेगी. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की पिछले सप्ताह हुई बैठक में यह फैसला लिया गया. इस योजना को अगले महीने अधिसूचित कर दिए जाने की उम्मीद है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को प्रोफेसर बनाने के लिए शोधपत्रों के प्रकाशन और अन्य योग्यता शर्तो से भी छूट दी जाएगी. हालांकि, शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसर आन प्रैक्टिस की संख्या कुल स्वीकृत पदों के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी.
शीर्ष स्तर पर काम कर चुके लोगों को दी जाएगी प्राथमिकता
यूजीसी की इस योजना के मुताबिक, इंजीनियरिंग, विज्ञान, मीडिया, साहित्य, उद्यमिता, समाज विज्ञान, फाइन आर्ट, सिविल सेवा और सशस्त्र बल सहित अन्य क्षेत्रों से जुड़े विशेषज्ञों को उच्च शिक्षण संस्थान प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त कर सकेंगे. किसी भी क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता साबित कर चुके या 15 साल का अनुभव रखने वाले व्यक्ति को इसके लिए योग्य माना जाएगा. शीर्ष स्तर पर काम कर चुके लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी.
तीन श्रेणियों में होगी नियुक्ति
प्रोफेसर आफ प्रैक्टिस की नियुक्ति तीन श्रेणियों में होगी. पहली श्रेणी में ऐसे शिक्षक होंगे, जिनकी फंडिंग उद्योग जगत करेगा. दूसरी श्रेणी के प्रोफेसरों की नियुक्ति के लिए शिक्षण संस्थानों को अपने स्रोत से संसाधन जुटाना होगा. इसके अलावा मानद आधार पर भी प्रोफेसर बनाए जा सकेंगे.
अभी क्या है नियम
इस समय यूजीसी से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर बनने के लिए शैक्षिक योग्यता में नेट और पीएचडी होना अनिवार्य है. यूजीसी के नए प्रस्ताव के बाद अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी प्रोफेसर बन सकेंगे. उनकी नियुक्ति के लिए यूजीसी ने मानक तय किए हैं.