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अजब-गजब: भर पेट खाना खाओ, जितना मन हो उतने पैसे दो…अगर नहीं हैं तो मत दो

इंसानियत ढाबा: कई बार एक ऐसी घटना घट जाती है, जो हमें सोचने को मजबूर कर देती है. बता दें, आज हम इस खबर की मदद से पुदुचेरी के रहने वाले शेखर पूवरसन की कहानी बताऊंगा. जिन्हें कई साल पहले एक ऐसा दिन देखना पड़ा था. जिसने उनका लाइफ के देखने का नजरिया ही बदल दिया. शेखर को उस दिन एक बुजुर्ग मिला जो बहुत ही भूखा था, लेकिन शेखर के पास भी बहुत पैसे नहीं थे, उन्होंने बुज़ुर्ग दयनीय हालत में देख उसकी मदद की. उस बुजुर्ग ने उन्हें जो स्नेह दिया. उसने शेखर की लाइफ बदल दी. आज शेखर ऐसे लोगों के लिए एक ढ़ाबा चलाते हैं.

कोरोना के चलते नहीं मिल रही थी नौकरी
खबर के मुताबिक, 22 साल का शेखर पूवरसन एक दिन उदास होकर पुडुचेरी समुद्र तट पर बैठे हुए थे. शेखर कई तरह की चिंताओं घिरे हुए थे. उन्हें अपनी दिक्कतों का कोई समाधान नहीं मिल रहा था. शेखर ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा ले रखा था, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही थी. शेखर ने नौकरी पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन महामारी ने नौकरी के सारे रास्ते बंद कर दिए थे. उस दौरान शेखर को इससे बड़ी चिंता ये थी, कि उनके बीमार पिता का इलाज कैसे होगा?

भूखे बुजर्ग को देख शेखर का दिल पिघल गया
इन सब चिंताओं के बीच शेखर को भूख भी लगी थी, लेकिन उसकी जेब में मात्र 10 रुपए ही थे. शेखर भूख मिटाने के लिए चाय की दुकान पर पहुंचा. वहां उसे एक बुज़ुर्ग दयनीय हालत में दिखा.  शेखर ने बुज़ुर्ग से पूछा, ‘आपने कुछ खाया है?’ बुज़ुर्ग ने जवाब में कहा कि उसे बहुत भूख लगी है. शेखर अजनबी को चाय स्टाल तक ले गया और उसके लिए एक कप चाय खरीद कर लाया. उसने तुरंत उसे पी लिया.  इसके बाद बुजुर्ग ने आदर पूर्ण नजरों से शेखर को धन्यवाद कहा. बुजुर्ग का शेखर को कृतज्ञता भरी नजरों से देखना उसे प्रभावित कर गया.

शेखर ने शुरू किया इंसानियत ढाबा
घर लौटे शेखर ने उसे पूरी तरह से बदल दिया था. अब उसका मन पहले से अधिक भारी हो गया था. इस दौरान शेखर ने अपनी मां से कहा कि अगर किसी भी इंसान को खाने के लिए गिड़गिड़ाना या भीख मांगना पड़े तो ये बेहद शर्मनाक बात है. शेखर ने ऐसे लोगों के लिए फूड स्चॉल लगाने के लिए अपनी मां को मनाया. जिसके बाद शेखर ने पुड्डूचेरी हाईवे पर थेन्कोदीपक्कम पर मानधनेयम यानी इंसानियत नामक ढाबा खोल दिया. शेखर यहां लोगों को खाने में पोंगल, इडली, सांभर, चटनी देते हैं.

मां के साथ स्टॉल लगाने की वजह
इस दौरान सबसे अहम बात यह है कि, वह किसी से खाने के लिए पैसे नहीं मांगते हैं. उनके स्टॉल के पास एक पैसों का बक्सा रखा है, जिस पर लिखा है, ‘इच्छानुसार पैसे दीजिए… चलिए इंसानियत की सेवा करें.’ नाश्ते के लिए कई ऑफिस जाने वाले लोग, छात्र इस स्टॉल पर आते हैं. शेखर और उसकी मां सुबह 5 बजे उठकर खाना बनाते हैं और 7:30 बजे ये स्टॉल हाइवे पर लग जाता है. शेखर के स्टॉल पर उन्हें भी खाना खिलाया जाता है जिनके पास पैसे नहीं होते.

स्टॉल चलाने के लिए शेखर करता है ये काम
रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्टाल का कुल दैनिक खर्च 1,000 रुपये से अधिक है, लेकिन कमाई 500 रुपये से कम है. शेखर स्टॉल को चलाने के लिए शाम को बिजली सेवा केंद्र में काम करते हैं. ताकि वे अपने भोजन स्टाल और अपने परिवार को पाल सकें. शेखर आज भी भूखे लोगों के लिए खाना बना और खिला रहे हैं.

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