शीर्ष अदालत ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता के इस कथन का भी संज्ञान लिया कि सरकार ने 64 व्यक्तियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया है और इनमें से कुछ ने इस तरह के आदेशों को चुनौती दी है जो कैट में लंबित हैं. पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इस तथ्य के मद्देनजर , हमारी राय है कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर विचार करना उचित नहीं होगा. हम तद्नुसार याचिका खारिज करते हैं और याचिकाकर्ता के लिये कैट के समक्ष उपलब्ध कानूनी विकल्प का मार्ग खुला छोड़ रहे हैं.’’
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सुप्रीम कोर्ट ने किया इस तथ्य का जिक्रशीर्ष अदालत ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि याचिकाकर्ता अशोक कुमार अग्रवाल यह कार्यवाही शुरू करने से पहले दिल्ली उच्च न्यायालय गये थे जहां उसकी याचिका विचारणीयता के सवाल पर खारिज हो गयी थी. याचिकाकर्ता ने इसके बाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी. इस मामले में न्यायलाय ने 21 अक्टूबर, 2019 को उसे वैकल्पिक उपाय करने की छूट दी थी.
इसके बाद, इस अधिकारी ने अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और विकास सिंह का तर्क था कि न्यायालय के 21 अक्टूबर के आलोक में यह याचिका विचार योग्य है.
शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि अगर याचिकाकर्ता कैट के समक्ष यह मामला ले जाता है तो वह इसका यथाशीघ्र और हो सके तो याचिका दाखिल करने की तारीख से चार महीने के भीतर इसका निस्तारण करेगा. सरकार ने पिछले साल भ्रष्टाचार, पेशेवर कदाचार और जबरन वसूली जैसे आरोपों के मद्देनजर भारतीय राजस्व सेवा (आयकर) के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया था.