वर्धा के MGIMS अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट और रिसर्चर डॉ. एसपी कलंतरी का कहना है-ऐसी थेरेपी का इस्तेमाल सांपों के काटने, डिप्थीरिया और रेबीज जैसे रोगों में किया जाता रहा है. लेकिन इस तरह की एंटीबॉडी बिना साइंटिफिक ट्रायल्स के लोगों को नहीं दी जा सकती. उन्होंने कहा है कि ICMR अपने ही नियमों को तोड़ रहा है. कलंतरी के अलावा वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील ने भी इस एंटी-सिरम पर सवाल उठाए हैं.
गौरतलब है कि गुरुवार को ICMR ने बताया था कि विशेष तरह का एंटी-सिरम (Antisera) विकसित किया है जो कोरोना के इलाज (Covid-19 Treatment) में कारगर हो सकता है. ये एंटी-सिरम अभी जानवरों में विकसित किया गया है. अगर बोलचाल की भाषा में कहें तो वैज्ञानिकों ने किसी बाहरी बैक्टीरिया या वायरस से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी तैयार की है. यह अविष्कार इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कोरोना संक्रमण के बाद इलाज के लिए ही नहीं बल्कि संक्रमण से बचाव के लिए भी इस्तेमाल (prophylaxis and treatment of COVID-19) की जाएगी.आईसीएमआर ने बताया है कि इस तरह के इलाज का इस्तेमाल पूर्व में कई वायरल और बैक्टिरियल इंफेक्शन के इलाज में किया जा चुका है. इनमें रेबीज, हेपेटाइटिस बी, वैक्सीनिया वायरस, टेटनस और डिप्थीरिया जैसी बीमारियां.