शक्तिपीठों की कहानी
देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है और ये पवित्र शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थापित हैं. इन 51 शक्तिपीठों के बनने के सन्दर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. राजा दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व’ नामक यज्ञ का आयोजन करवाया और इस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव से अपने अपमान का बदला लेने के लिए अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया. भगवान शंकर जी की पत्नी और राजा दक्ष की पुत्री माता सती इस अपमान से पीड़ित हुई और माता सती ने उसी यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी. इसके बाद भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को अपने कंधे पर उठा करके तांडव करने लगे. भगवान शंकर को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को कई टुकड़ों में काट दिया. माता सती के शरीर के अंग, वस्त्र और आभूषण जहां-जहां गिरे, उन जगहों पर मां दुर्गा के शक्तिपीठ बनें और ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं.
9 शक्तिपीठों में से एक विशालाक्षी शक्तिपीठ, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
विशालाक्षी शक्तिपीठ अथवा काशी विशालाक्षी मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां देवी माता सती के दाहिने कान के मणिजड़ित कुंडल गिरे थे. इसलिए इस जगह को ‘मणिकर्णिका घाट’ भी कहते हैं. यह शक्तिपीठ अथवा मंदिर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर पतित पावनी गंगा के तट पर स्थित मीरघाट (मणिकर्णिका घाट) पर है. नवरात्रि के सभी नौ दिनों के दौरान मंदिर में विशेष पूजा होती है और शारदीय नवरात्रों में विशेष तौर पर पांचवे दिन से यहां भीड़ अत्यधिक बढ़ जाती है.
मां विशालाक्षी का महत्व
स्कन्द पुराण के अनुसार, ‘मां विशालाक्षी’ नौ गौरियों (नौ देवियों) में पंचम गौरी हैं. ‘मां विशालाक्षी’ को ही ‘मां अन्नपूर्णा’ भी कहते हैं. ऐसा इसलिए कहा जाता है कि ये संसार के समस्त जीवों को भोजन उपलब्ध कराती हैं. ‘मां अन्नपूर्णा’ को ‘मां जगदम्बा’ का ही एक रूप माना गया है.