झारखंड में एक पिता थैलेसीमिया से पीड़ित अपने बच्चे की जान बचाने के लिए 400 किमी की दूरी साइकिल से तय करता है। बच्चे को हर महीने खून चढ़ाया जाता है। अपने जिले में बच्चे का ब्लड ग्रुप नहीं मिलने के कारण पिता को कभी बिहार के भागलपुर तो कभी जामताड़ा जाना पड़ता है।
गांवों में स्वास्थ्य की सुविधाएं पहले ही शहरों के मुकाबले अच्छी नहीं थी। वहीं कोरोना काल में इसकी असली सच्चाई भी सामने आ गई। एक तरफ महामारी तो दूसरी तरफ अन्य बीमारियों के इलाज को लेकर लोग भटक रहे हैं। ऐसे ही एक मजदूर पिता को अपने बच्चे के लिए 400 किलोमीटर साइकिल चलाकर शहर उसे खून चढ़वाने जाना होता है।
दिल्ली में मजदूर के तौर पर काम करने वाले दिलीप कोरोना में हालात बिगड़ने के बाद अपने घर गोड्डा लौट आए थे। गोड्डा जिले के मेहरमा ब्लॉक के गांव में रहने वाले दिलीप के साढ़े पांच साल के बेटे को थैलेसीमिया है और उसे हर महीने खून चढ़ाना होता है। कोरोना काल में रक्त दान में कमी आने के कारण उनके जिले में बच्चे के लिए ए नेगेटिव ब्लड ग्रुप ही नहीं मिल रहा है। बच्चे की जिंदगी के लिए मजबूर पिता कभी बिहार के भागलपुर तो कभी जामताड़ा के सदर अस्पताल दौड़ता है।
अपने बच्चे की थैरेपी के लिए 400 किमी साइकिल चलाने वाले मजदूर की बात जब लोगों के सामने आई तो कई लोगों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार गोड्डा के ब्लड बैंक कर्मचारी ने बताया कि कोरोना के कारण लोग रक्तदान के लिए नहीं आ रहे हैं जिसके कारण स्टॉक में भारी कमी आई है। साथ ही गोड्डा के सिविल सर्जन एसपी मिश्रा ने कहा कि वह इस बारे में नहीं जानते थे अगर वह जानते तो यहीं व्यवस्था कराने का प्रयास करते। उनका कहना है कि कोशिश होगी कि भविष्य में मरीज को इस तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा।