कोरोना वायरस की दूसरी लहर की रफ्तार भले ही कम होती जा रही है, लेकिन विशेषज्ञ लगातार तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे हैं। ये लहर बच्चों के लिए प्रतिकूल बताई जा रही है। यदि कोरोना की तीसरी लहर का प्रकोप होता है तो झारखंड के अति कुपोषणग्रस्त जिलों पश्चिमी सिंहभूम, गुमला और बोकारो पर ये भारी पड़ सकता है।
सूबे में 43 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। राज्य पोषण मिशन के अनुसार, कुपोषित बच्चों की संख्या चार लाख है। कुपोषित और कमजोर इम्यूनिटी वाले बच्चों में विटामिन, प्रोटीन और खून की कमी रहती है। ये तीनों प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करते हैं। इसलिए ऐसे बच्चों पर कोरोना गहरा आघात कर सकता है।
दावे अलग-अलग पर हैं चिंताजनक
राज्य पोषण मिशन के अनुसार झारखंड में चार लाख बच्चे कुपोषित हैं, जबकि समाज कल्याण विभाग का कहना है कि कुपोषित बच्चों की संख्या मात्र 22 हजार है। विभाग उन्हीं बच्चों को कुपोषित मान रहा है, जो रेड जोन में पहुंच चुके हैं और उनका उपचार सरकारी केन्द्रों में चल रहा है।
राज्य पोषण मिशन ने वर्ष 2016 में बच्चों का सर्वे किया था, जिसमें चार लाख बच्चे कुपोषण की श्रेणी में चिह्नित किए गए थे। यूनिसेफ के अनुसार झारखंड में 43 प्रतिशत बच्चे कुपोषित और करीब 55 प्रतिशत महिलाएं एनेमिक हैं। रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में कुपोषण के चलते जहां बच्चे नाटे हो रहे हैं, वहीं उनका वजन भी नहीं बढ़ रहा है।
नौ प्रखंड अधिक प्रभावित
राज्य के तीन जिलों के नौ प्रखंड कुपोषण से अधिक प्रभावित है। पश्चिमी सिंहभूम के चक्रधरपुर, खूंटपानी, मनोहरपुर, नोवामुंडी, जगरनाथपुर और तांतनगर, गुमला के सदर तथा बोकारो के चंदनक्यारी और चास कुपोषण प्रभावित प्रखंड है। पश्चिमी सिंहभूम में पांच वर्ष तक के कुपोषित बच्चों की संख्या 66.9 प्रतिशत है। गुमला सदर को छोड़कर बाकी आठ प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी बच्चे अधिक कुपोषित हैं, जिसका अधिकांश भू-भाग वनों से अच्छादित है।
गरीबी ने कम किया वजन
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार झारखंड में पांच वर्ष तक के बच्चों के कुपोषण का प्रतिशत 47.8 है। 6-59 माह की आयु के लगभग 70 प्रतिशत बच्चे खून की कमी से पीड़ित हैं। साथ ही, राज्य में लगभग हर तीसरी महिला भी कुपोषित हैं। वन क्षेत्रों में अधिकांश आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं, जो आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं। नतीजन, ये अपने बच्चों का सही भरण-पोषण नहीं कर पाते हैं।
20 लाख बच्चों का शारीरिक विकास अवरुद्ध
झारखंड में लगभग हर दूसरा बच्चा नाटेपन का शिकार है। दस में से तीन बच्चे कमजोर होते हैं। संख्या के लिहाज से, प्रदेश में पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 20 लाख बच्चे विकास अवरुद्धता से ग्रस्त हैं, जो बिहार के बाद भारत में विकास अवरुद्धता का उच्चतम अनुपात है।
कमजोर इम्यूनिटी देती है बीमारी को दावत
एकेडमिक ऑफ पेडियाट्रिक एसोसिएशन, जमशेदपुर शाखा के अध्यक्ष मंटू अखौरी सिन्हा ने बताया कि कुपोषित और कमजोर इम्यूनिटी वाले बच्चों में विटामिन, प्रोटीन और खून की कमी रहती है। कुपोषित बच्चों में कोरोना से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और उसकी जान पर भी असर पड़ सकता है। ऐसे बच्चों में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया का भी खतरा बरकरार रहता है।