मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में बिहार ने इतिहास रच दिया है। बिहार 21325 टन मशरूम उत्पादन के साथ देश में सर्वाधिक मशरूम उत्पादक अग्रणी तीन राज्यों में शामिल हो गया है। पहले स्थान पर ओडिसा और दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र है। भले ही बिहार उत्पादन के मामले में तीसरे नंबर पर है, लेकिन ओडिसा और महाराष्ट्र से उत्पादकता दर में महज चंद फासले पर ही है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विवि के मशरूम वैज्ञानिक डॉ. दयाराम ने बताया कि मशरूम निदेशालय सोलन की ओर से जमा किए गए देशभर के मशरूम उत्पादन के डाटा के अनुसार 2020-21 में सबसे अधिक मशरूम उत्पादन ओडिसा (22500 टन) में हुआ।
दूसरे स्थान पर रहे महाराष्ट्र में 22000 टन व बिहार में 21325 टन उत्पादन किया गया। इसके बाद हरियाणा 19600 टन, पंजाब 18500, राजस्थान 14600, उत्तराखंड 14015, चंढ़ीगढ़ 13900, यूपी 13800, तमिलनाडू 11000 टन का उत्पादन रहा। उन्होंने बताया कि इस मुकाम को हासिल करने में बिहार ने 30 वर्षों से अधिक का सफर तय किया। सभी जिलों में मशरूम क्षेत्र में हुए विकास ने राज्य में इसके कारोबार को 4 हजार करोड़ से 5 हजार करोड़ पर पहुंचा दिया है। उन्होंने बताया कि राज्य में आएस्टर, बटन, दूधिया मशरूम की व्यवसायिक खेती हो रही है। जबकि पैडीस्ट्रा, औषधीय गुण वाले हेरेशियम व सिटाके को व्यवसायिक खेती बनाने की दिशा में प्रयास तेज है।उन्होंने बताया राज्य में फिलहाल करीब 55 कंट्रोल यूनिट लगी है, जिसमें करीब तीन दर्जन से मशरूम का उत्पादन रोजाना हो रहा है। इसके अलावा सीजनल भी उत्पादन होता है। वैज्ञानिक के अनुसार आरएयू मशरूम उत्पादन के लिए तकनीकी ज्ञान के साथ बीज, कम्पोस्ट उपलब्ध करा रहा है। समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
समस्तीपुर के दीपक कुमार, वैशाली जिले की मनोरमा सिंह, छपरा के अजय राय, जमुई के मोहन प्रसाद केसरी, मुजफ्फरपुर के शशिभूषण तिवारी, गया के राजेश सिंह जैसे सैकड़ों नाम हैं जिन्होंने मशरूम उत्पादन कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के साथ राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।
मशरूम से बन रहे हैं कई प्रोडक्ट
मशरूम वैज्ञानिक ने बताया कि वर्ष 1990 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कृषि विवि में आऐस्टर मशरूम उत्पादन से इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन वर्ष 2000 से अधिक लोगों ने इसमें रूचि लेनी शुरू की। तब बटन मशरूम का उत्पादन शुरू हुआ। उसके बाद वर्ष 2005 से दूधिया मशरूम उत्पादन की शुरुआत हुई, लेकिन 2010 के बाद इसने रफ्तार पकड़ी। आज मशरूम उत्पादन, बीज व कम्पोस्ट उत्पादन के अलावा गुलाब जामुन, गुजिया, पनीर, लड्डू, नमकीन बिस्किट, सब्जी जैसे लजीज व्यंजन बन रहे हैं। मशरूम का अधिक उत्पादन होने पर उत्पादन करने वाले इसे पाउडर में बदल देते हैं। यह तकनीक 2018 में आयी। इसका उपयोग कर कारोबारी मशरूम को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखते हैं। जिससे उन्हें नुकसान नहीं होता है। बताया गया है कि मशरूम के पाउडर का बिस्किट के साथ ही मिठाई व खाद्य पदार्थ बनाने में उपयोग किया जाता है।
पूर्वोत्तर राज्यों में बिहार के मशरूम की सबसे ज्यादा डिमांड
बिहार में होने वाले मशरूम की ज्यादा डिमांड पूर्वोत्तर के राज्यों में है। इसके अलावा झारखंड व यूपी में भी यहां के मशरूम की मांग है। पहले स्थान पर काबिज ओडिशा के भी कुछ जिलों में बिहार से मशरूम जाती है। मिली जानकारी के अनुसार कोरोना संकट शुरू होने पर 2020 में 10 दिन मशरूम उत्पादकों को प्रोडक्ट बाहर भेजने में परेशानी आयी। कोरोना की दूसरी लहर में किसी तरह की परेशानी नहीं आयी। लेकिन फर्क यह आया कि पहले जो मशरूम पहले 150 से 180 रुपये बिकता था, वह इन दिनों 100 से 125 रुपये किलो बिक रहा है।
राज्य में दो तरह के लोग मशरूम उत्पादन कर रहे हैं। करीब तीन दर्जन उद्यमी के रूप में कंट्रोल इन्वायरमेंट में बटन मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं, जिससे 50 से अधिक लोग रोजाना रोजगार पा रहे हैं। दूसरे 50 हजार से अधिक छोटे किसान बटन, आएस्टर व दूधिया मशरूम का उत्पादन कर आजीविका चला रहे हैं। इसमें जेल में प्रशिक्षण लेने के बाद सजा काटकर घर पहुंचे व कोविड के कारण दूसरे राज्यो से लौटे प्रवासी मजदूर भी शामिल हैं। -डॉ.आरसी श्रीवास्ताव, कुलपति, आरएयू, पूसा