2015 में यहां से राजद के जितेंद्र राय विधायक बने. उनको राजनीति अपने पिता स्व. यदुवंशी राय से विरासत में मिली थी. इस विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी और राजद के बीच सीधी टक्कर होती आई है. हालांकि मुस्लिम, यादव और पिछड़ा वर्ग के वोटरों के ध्रुवीकरण का फायदा राजद को मिलता रहा है. इस बार भी बीजेपी के लाल बाबू राय यहां से फिर ताल ठोकने को तैयार दिख रहे हैं. मढ़ौरा रेल इंजन कारखाने को खुलवाने को दोनों पार्टियां भुनाने में जुटी हैं. क्योंकि यह प्रोजेक्ट लालू यादव की देन है, लेकिन इसका उद्घाटन बीजेपी सरकार में हुआ.
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किसान समस्याओं के मकड़जाल में फंसे हैंमढ़ौरा विधानसभा क्षेत्र में स्थापित चीनी मिल, मॉटर्न फैक्ट्री, सारण इंजीनियरिंग और शराब फैक्ट्री पर बरसों पहले ताला लग गया था. चीनी मिल को चालू करवाकर यहां ईख की खेती को दुबारा शुरू कराना हर चुनाव में मुद्दा बनता रहा है और इस बार भी बनेगा. यहां अनुमंडलीय अस्पताल अब तक स्थापित नहीं हुआ है. अनुमंडलीय मुख्यालय होने के बाद भी यहां सब ट्रेजरी और व्यवहार न्यायालय स्थापित नहीं हुए. नगर पंचायत होने के बाद भी यहां के लोग नगरीय सुविधा से वंचित हैं. एक अदद पानी टंकी का निर्माण तक यहां नहीं हो सका है. गांवों के किसान समस्याओं के मकड़जाल में फंसे हैं. सिंचाई के संसाधन नहर और सरकारी ट्य़ूबवेल अस्तित्व विहीन हैं. पॉलिटेक्निक कॉलेज में शिक्षक नहीं है और अन्य शिक्षण संस्थानों की शैक्षणिक व्यवस्था भी बदहाल है. छपरा-मढौरा रोड बदहाल है.
यादव समाज के पक्ष में रहे हैं यहां के जातीय समीकरण
कुल 2,61,559 वोटर वाले मढ़ौरा विधानसभा क्षेत्र में पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,39,111 हैं. वहीं 1,22,448 महिला और 6 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. इस भूमिहार यादव बाहुल्य सीट पर राजद का कब्जा रहा है. अधिकांश विधायक यादव समाज से ही बने हैं. इस बार भी जितेंद्र राय चुनाव मैदान में कूदने को तैयार हैं और बीजेपी इनको पटखनी देने वाले उम्मीदवार की तलाश कर रही है. उसमें लाल बाबू राय का नाम फिलहाल चर्चा में है.
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1990 से अब तक इन विधायकों के हाथ में रही है मढौरा की कमान
2015 – जितेंद्र कुमार राय – राजद
2010 – जितेंद्र कुमार राय – राजद
2005 – (अक्टूबर) लाल बाबू राय – निर्दलीय
2005 – (फरवरी) लाल बाबू राय – निर्दलीय
2000 – यदुवंशी राय – राजद
1995 – यदुवंशी राय – जनता दल
1990 – सुरेंद्र शर्मा – निर्दलीय