वन उत्पादन को बाज़ार उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार कार्ययोजना बनाने की ओर कार्य कर रही है. झारखंड से प्रचुर मात्रा में साल, लाह, इमली, महुआ, चिरौंजी, महुआ समेत अन्य वनोत्पाद को व्यवस्थित बाजार देने की कार्ययोजना बनाने के लिए राज्य सरकार और इंडियन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस की भारती इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी के बीच एमओयू किया गया. एमओयू के बाद सरकार की ओर से पहल की गयी.
राज्य के आकांक्षी जिला सिमडेगा से वनोत्पाद को बाज़ार उपलब्ध कराने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के रूप में उत्पादित वनोपज पर कार्य प्रारंभ हो चुका है. इसको लेकर उपायुक्त सिमडेगा सुशांत गौरव ने पायलट प्रोजेक्ट के सफल क्रियान्वयन की दिशा में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की. सिमडेगा के बाद अन्य वनोपज प्रधान जिलों में इसकी शुरुआत की जायेगी. सिमडेगा में अत्यधिक मात्रा में वनोत्पाद उपलब्ध है.
यहां के जनजातीय समुदाय तथा अन्य ग्रामीण अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए या अपनी जीविका चलाने के लिए पोषण आहार के साथ वनों से प्राप्त होनेवाले विभिन्न उत्पादनों से अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त करते हैं.
वनोत्पाद जनजातीय समुदाय के लिए अतिरिक्त आमदमी का प्रमुख स्रोत है. विभिन्न पौधों, पेड़ों के पत्ते, फूल, फल एवं बीज, मशरूम, कंद-मूल आदि से वे अपनी जीविका चलाते हैं तथा वनों से प्राप्त कुछ प्रकार के घास, तेल, बीज, गोंद, लाह आदि से वे आमदनी प्राप्त करते हैं. यह भी देखा गया है की जंगल के अंदर या आस-पास बसे लोगों को पच्चीस प्रतिशत से ऊपर आय वनों से प्राप्त वनोत्पाद को बेचकर प्राप्त होता है. सखुआ के पत्तों से ही कटोरी एवं दतवन, बीजों से तेल प्राप्त होनेवाले विभिन्न पेड़ों जैसे – महुआ, करंज, कुसुम, नीम, सखुआ आदि के बीजों को अधिक मात्रा में जमा कर ग्रामीण इसे बाजार में बेच कर आमदनी प्राप्त करते हैं.