झारखंड के काले हीरे यानी धनबाद शहर को सिटी ऑफ जॉय यानी कोलकाता हावड़ा से जोड़ने वाली एक ऐसी ट्रेन जिसमें भगवान विश्वकर्मा का दरबार सजेगा. उस डिब्बे के अन्दर एक भव्य पंडाल बनाया जाएगा जिसमें विश्वकर्मा विराजेंगे. पंडाल सरीखे दिखने वाले यात्री कोच में विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित की जाएगी. पहले ढोल-नगाड़े के साथ ट्रेन के प्लेटफार्म पर आने का अभिनंदन होगा. पुजारी धूप-बत्ती जलाएंगे और नारियल फोड़ कर ट्रेन के इंजन की पूजा करेंगे. एक साथ मिल कर नारा लगेगा बोलो-बोलाे विश्वकर्मा भगवान की जय….
जी हां, हम बात कर रहे हैं झारखंड और बंगाल को जोड़ने को रेलवे की अतिविशिष्ठ ट्रेन कोलफील्ड एक्सप्रेस की. शनिवार को विश्वकर्मा पूजा है और इस ट्रेन में पहले की तरह फिर से भगवान विश्वकर्मा का पूजा आयोजन होगा. ट्रेन में हर दिन सफर करने वाले डेली पैसेंजर्स ने इस बार इसकी खास तैयारी की है. ट्रेन में सजने वाला विश्वकर्मा दरबार इस वर्ष इसलिए भी और खास है क्योंकि दो वर्षाें तक ऐसे आयोजन नहीं हो सके थे. साल 2020 में ट्रेन बंद थी और 2021 में ट्रेन चलने के बाद भी सेकेंड सीटिंग की बुकिंग की वजह से डेली पैसेंजर्स कम संख्या में ही सफर कर पा रहे थे. अब ऐसी तमाम बंदिशें खत्म हो गई हैं.
एक अक्टूबर 1958 को चली थी कोलफील्ड एक्सप्रेस
धनबाद से हावड़ा जानेवाली कोलफील्ड एक्सप्रेस की शुरुआत धनबाद जिला के अस्तित्व में आने के बाद ही हो गई थी. पहली बार एक अक्टूबर 1958 को ट्रेन चली. इस ट्रेन की शुरुआत होने से धनबाद और आसपास के छोटे-बड़े कारोबारी, व्यवसायी और दुकानदारों को बंगाल से बाजारों से जुड़ने का अवसर मिला. इससे कारोबार और रोजगार दोनों को बढ़ावा मिला. आज इतने दशक बाद भी हर दिन सैंकड़ों कारोबारी और व्यवसाय और दुकानदार डेली पैसेंजर के लिए इसी ट्रेन से जाते-आते हैं.
रोजगार का जरिया इसलिए करते हैं ट्रेन की पूजा
तकरीबन 35 वर्षों से कोलफीड एक्सप्रेस से हर दिन धनबाद से आसनसोल जाने-वाले विजय साव और भोला साव कहते हैं कि गांव से जब धनबाद आए थे तो किराए पर छोटी सी दुकान लेकर दो वक्त की रोटी जुगाड़ करना पड़ता था. कोलफील्ड एक्सप्रेस से ही उनका कारोबार बढ़ा और आज अपनी दुकान और मकान सबकुछ है. घर की दाल-रोटी से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक के पैसे जुटाने के लिए इसी ट्रेन से सफर किया और अब भी कर रहे हैं. इसलिए हर साल इस ट्रेन की पूजा करते हैं.
सजावट और दरवाजे पर केले के पेड़ का तोरण द्वार
प्रतिमा स्थापना से पहले पूरे कोच की सफाई डेली पैसेंजर ही करेंगे. फिर कोच को सजाकर पंडाल का रूप दिया जाएगा. ट्रेन के दरवाजे के दोनों ओर केले के पेड़ का तोरण द्वार भी बनेगा. इसके बाद भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा होगी. धनबाद से हावड़ा तक पूरे रास्ते जश्न सा माहौल रहेगा.