यहां एक संस्था है पीआरडीएफ (Participatory Rural Development Foundation), जो लगभग दो दशक से कांट्रैक्ट पर बीज पैदा कराने और आर्गेनिक चावल, गेहूं उगाने का काम करती है. जिसके साथ अनुबंध करके संतकबीर नगर, महराजगंज, बस्ती और गोरखपुर के 200 से अधिक किसान धान, गेहूं, चना, मटर, मसूर और सरसों के बीज पैदा करने का काम करते हैं. विश्व खाद्य संगठन (FAO) में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रहे जानेमाने कृषि वैज्ञानिक प्रो. रामचेत चौधरी इसके अध्यक्ष हैं. वो खुद संतकबीर नगर की धनघटा तहसील के एक किसान परिवार के रहने वाले हैं.
प्रो. रामचेत चौधरी से जुड़े हैं 5200 किसान, करते हैं अनुबंध खेती
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प्रो. चौधरी कहते हैं कि उन्होंने दुनिया के कई मुल्कों में रहकर खेती को आगे बढ़ाया है. उन्होंने भारत में अनुबंध मॉडल पर दो दशक पहले ही खेती की शुरुआत कर दी थी. तब यहां इसका कोई कांसेप्ट नहीं था. अगर कांट्रैक्ट फार्मिंग नुकसानदायक होती तो उनसे जुड़ने वाले किसानों (Farmers) का कारवां बढ़ता नहीं.
वो कहते हैं, “मैं नेता नहीं, कृषि वैज्ञानिक हूं, दुख होता है कि कुछ लोग राजनीतिक कारणों से नए आइडिया का विरोध कर रहे हैं. किसी भी अर्थशास्त्री और पार्टी ने किसी ऐसे किसान का उदाहरण नहीं दिया जो बताए कि कांट्रैक्ट फार्मिंग की वजह से वो गुलाम बन गया हो. फिर भी किसानों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं. दूसरी ओर, इसी देश में कांट्रैक्ट फार्मिंग की कई सक्सेस स्टोरी मौजूद हैं, जिनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है. पीआरडीएफ से जुड़े किसानों से मिलकर कोई भी पूछ सकता है कि उनके लिए कांट्रैक्ट फार्मिंग फायदेमंद है या नहीं.”
किसानों को मिलता है एमएसपी से 20 फीसदी अधिक
प्रो. चौधरी कहते हैं कि वो अपनी संस्था से जुड़े किसानों को कम से कम एमएसपी से 20 फीसदी अधिक रेट देते हैं, ज्यादा भी हो जाता है. जिन फसलों का एमएसपी नहीं है उनमें बाजार भाव से 20-25 फीसदी तक अधिक मिलता है. फेल होने वाले केस न के बराबर हैं. जिन किसानों का बीज फेल हो जाता है उनका अनाज के दाम पर बिक जाता है, घाटा उन्हें भी नहीं होता. अगर कांट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों का शोषण होता तो वे साथ छोड़ गए होते.

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क्वालिटी से समझौता तो कहीं भी नहीं होता
इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (IRRI) में जर्म प्लाज्म एक्सचेंज के ग्लोबल कोर्डिनेटर रह चुके चौधरी कहते हैं, “जहां तक क्वालिटी की बात पर हंगामा हो रहा है तो बिना क्वालिटी के तो कोई भी काम सक्सेस नहीं हो सकता. हमारी संस्था जिन किसानों के यहां कांट्रैक्ट पर बीज पैदा करवाती है उनके खेतों में डिपार्टमेंट ऑफ सीड सर्टिफकेशन (बीज प्रमाणीकरण) यूपी की टीम आकर चेक करती है. जब वो पास कर देती है तब हम बीज खरीदते हैं. रबी और खरीफ दोनों मिलाकर करीब 50,000 क्विंटल का सालाना बीज बेचा जा रहा है.”
कांट्रैक्ट पर आर्गेनिक फार्मिंग
प्रो. चौधरी ने बताया कि वो गोरखपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर और गोंडा में करीब पांच हजार किसानों से कांट्रैक्ट पर गेहूं और चावल की जैविक खेती करवा रहे हैं. हर किसान से एक एकड़ में गेहूं, धान पैदा कर रहा है. आर्गेनिक का सर्टिफिकेशन खुद करवाते हैं.