तीन भाइयों की, लेकिन अब सिर्फ दो भाइयों की बहन भी कॉलेज जाती थी. जब नजीब जेएनयू से घर आता था तो परिवार चहक जाता था. लेकिन 15 अक्टूबर 2016 को नजीब क्या गायब हुआ मानों इस घर की खुशियां ही चली गईं.
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नजीब की तलाश में मां फातिमा नफीस ने शहर-शहर सड़कों की खाक छानी. दिन-रात और सर्दी-गर्मी की परवाह न करते हुए कभी बस तो कभी ट्रेन से सफर किया. लेकिन नजीब की तलाश का यह सफर चार साल बाद भी अधूरा ही है. नजीब का भाई हसीब बताता है कि नजीब की तलाश में उम्र को मात देने वाली मां फातिमा का अब ज़्यादातर वक्त बिस्तर पर ही बीतता है.ये भी पढ़ें :- कोरोना पॉजिटिव के लिए प्लाज्मा चाहिए तो इस जेल में लगाइए फोन
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शुगर, ब्लड प्रेशर, जोड़ों के दर्द और उससे भी ज़्यादा नजीब के न मिलने की जुदाई के दर्द ने मां को कमजोर कर दिया है. डॉक्टरों की सलाह पर अब वक्त आराम करते हुए बीतता है. लेकिन बीते चार साल में शहरों को नापने वालीं मां को आराम भी खलता है. उन्हें लगता है कि आराम के चक्कर में वो नजीब को तलाशने वाले वक्त को बर्बाद कर रहीं हैं. कभी-कभी उन्हें हूंक उठती है कि मैं नजीब को तलाश करने जाऊंगी. लेकिन कोरोना संक्रमण को देखते हुए हम उन्हें कहीं लेकर नहीं जाते हैं. घर में ही वो थोड़ा बहुत चल-फिर लेती हैं. पिता नफीस भी घर पर ही रहकर आराम करते हैं.
गौरतलब रहे कि 15 अक्टूबर 2016 को नजीब जेएनयू के हॉस्टल से गायब हो गया था. तब से लगातार नजीब की मां के साथ ही देश की तीन बड़ी एजेंसियां दिल्ली पुलिस, एसआईटी और सीबीआई भी नजीब को तलाश कर चुकी हैं, लेकिन अभी तक उसकी कोई खबर नहीं मिली है.
वहीं नजीब की मां फातिमा नफीस का कहना है, “बेशक बीमारियों ने मुझे घेरा हुआ है. लेकिन अभी मैंने हिम्मत नहीं हारी है. आज भी घर में बैठे-बैठे सभी वकीलों से बात करती हूं. केस का स्टेट्स लेती हूं. जगह-जगह दूसरे शहरों में जो हमारे हमदर्द हैं और नजीब को तलाशने में हमेशा हमारी मदद की उन्हें भी फोन करती हूं कि वो अपनी कोशिशें जारी रखें”.